Sunday, December 12, 2010

कोई दोस्त...

कोई दोस्त है न रकीब है,
अब तो चैन भी न दिल की करीब है,
सोचता हूँ कभी बना लू, इन तनहाइयों को अपना दोस्त,
पर पता नहीं क्यों, इनकी भी दोस्ती मुझेई अब न नसीब है....

Wednesday, November 24, 2010

Fiza...

कुछ ऐसा अजब सा समां नज़र आया,
मेरा वजूद मुझ को मुझ से जुदा सा नज़र आया,
कुछ खुशनुमा यादें, मेरे आज से कशमकश करती नज़र आई,
पता नहीं क्यों वोह मुझ को खुद से अलग करती नज़र आई,
कभी अपनों से होकर जो खुशनुमा फिजा बहती थी,
वही हमे अब रुस्वइयो की आंधियां सी नज़र आई