कुछ ऐसा अजब सा समां नज़र आया,
मेरा वजूद मुझ को मुझ से जुदा सा नज़र आया,
कुछ खुशनुमा यादें, मेरे आज से कशमकश करती नज़र आई,
पता नहीं क्यों वोह मुझ को खुद से अलग करती नज़र आई,
कभी अपनों से होकर जो खुशनुमा फिजा बहती थी,
वही हमे अब रुस्वइयो की आंधियां सी नज़र आई
Wednesday, November 24, 2010
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