Sunday, January 4, 2009

pankhudi लगा के udana चाहता हूँ

"साँसों के साथ मन् की डोर पलकों के आगे सपनो की भोर

र्पंखोदी लगा के उड़ती उमंगें..क्या हैं यह मेरी जीनें की तरंगें

सान्सो में उठता हुआ अज्जीब सा धुनाओंखो

आँखों में उम्दात्ता हुआ अजब सा समुंदर

साँसौ में आता हुआ एक नया जीवन..चुप चाप बान्हूं में आता यह नया स्पंदन...

क्या ज़िन्दगी नें एक नई पहल की हैं..क्या aarzoo nein ली हैं एक नई अंगडाई...

क्यों मुस्करानें लगा हूँ में.. हर दूसरें पल...

पल पल क्यों आनें लगी हैं मुझें यह अजब से अन्गादयीं॥

सोचता हूँ में.. की ऐसा क्यों हो रहन हैं॥

जानन चाहता हूँ में.. ऐसा क्या हो रहन हैं॥

पर जो भी हुआ हैं.. जो भी हो रहन हैं॥

पता नहीं क्यों मुझें सब कुछ अपना सा लग रहन हैं...

यहीं वोह पल हैं जो में जीना चाहता हूँ... पंखोदी उदा के उड़ना चाहता हों..."

3 comments:

  1. WoW.... Wish I could say "Ud jaa Kale Kawa...."

    Jokes apart Lovely sir :)

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  2. Who could ever limit the vastness of sky and flight of birds :).Don't restrain yourself..once you discover your wings.

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  3. yeap... thanks for the comments ...... It will keep pursuing my own dreams..

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